अयोध्या में महिला पत्रकार पर हमला: न्याय की लड़ाई ने लिया आंदोलन का रूप, प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

वेलकम इंडिया
अयोध्या में पत्रकारों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। हाल ही में महिला पत्रकार मिताली रस्तोगी और उनके बच्चों पर बेरहमी से हमला किया गया, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। इस हमले के बावजूद, प्रशासन ने हल्की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर मामले को दबाने की कोशिश की, लेकिन अब तक किसी भी आरोपी की गिरμतारी नहीं हुई है। न्याय की मांग को लेकर चल रहा अनिश्चितकालीन धरना गांधी पार्क, सिविल लाइन, अयोध्या में दूसरे दिन में प्रवेश कर चुका है। पहले दिन मिताली रस्तोगी की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। अभी उनके मन के जख्म भरे भी नहीं थे कि यह दूसरी बड़ी घटना घट गई। पहले से ही एक बड़ी त्रासदी झेल चुकीं मिताली रस्तोगी के लिए यह एक और बड़ा आघात साबित हुआ। प्रधानमंत्री मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बताते हैं, और मुख्यमंत्री भी दावा करते हैं कि मीडिया को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होनी चाहिए, लेकिन अयोध्या प्रशासन बिल्कुल बेबस नजर आ रहा है। सवाल यह उठता है कि आखिर प्रशासन किसके दबाव में काम कर रहा है? अगर महिला पत्रकारों की यह स्थिति है, तो आम जनता की स्थिति क्या होगी? कागजों पर सब कुछ अच्छा दिखाने की कोशिश होती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। जो कोई भी न्याय की मांग करता है, उसे या तो दबाया जाता है या फिर फर्जी मुकदमों में फंसाने की साजिश रची जाती है। लगातार कई संगठनों और समाजसेवी लोगों ने मिताली रस्तोगी को समर्थन दिया है। 16 से 18 मार्च के बीच यह धरना एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है, और इसकी पूरी जिम्मेदारी अयोध्या पुलिस प्रशासन की होगी। प्रशासन अब तक महिला पत्रकार का हालचाल लेने तक नहीं आया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं एक बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है। पहले भी मिताली रस्तोगी और उनके सहयोगियों को फंसाने की साजिशें चलती रहीं हैं।