आध्यात्म

कर्म, भक्ति व ज्ञान के समन्वय का संदेश देती है भारतीय संस्कृति – श्री हरि चैतन्य महाप्रभु

बिजनौर : नूरपुर ब्लॉक क्षेत्र के गांव भैंसा में 26 जनवरी को प्रेमावतार, युगदृष्टा श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर स्एंव विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यहां आयोजित तीन दिवसीय विराट धर्म सम्मेलन के तीसरे दिवस उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि कर्म , भक्ति व ज्ञान के समन्वय का संदेश देती हैं भारतीय संस्कृतिं। कर्म ही पूजा है कहने की अपेक्षा कर्म भी पूजा बन सकता है। जिस कार्य के साथ विचार, विवेक या ज्ञान ना हो ऐसा हर कार्य पूजा कहलाने का अघिकारी नही हो सकता। बिना बिचारे किया हुआ कर्म तो पश्चाताप, ग्लानि व शर्मिन्दगी के अलावा कुछ भी प्रदान नहीं कर सकेगा। कर्म के साथ यदि ज्ञान व भक्ति का सुन्दर समन्वय स्थापित कर दिया जाये तो जहाँ एक ओर हमारा हर कर्म पूजा कहलाने का अघिकारी हो सकेगा वहीं हमारे जीवन का सौन्दर्य निखर उठेगा व जिस सच्चे सुख व आनन्द से लाख प्रयास करने के बावजूद वंचित थे उसे प्राप्त करने के अघिकारी बन जाऐंगे। हमारा जीवन उच्चता, दिव्यता व महानता से भर उठेगा। अंत श्रम व श्रद्धा का अनूठा संगम स्थापित करें। उन्होंने कहा कि संसार में कोई भी व्यक्ति रूप, धन, कुल या जन्म से नहीं अपितु अपने कर्मों से महान बनता है। यदि कुल से महान होते तो रावण जैसा महान कौन होता। रूप से ही महान होते तो अष्टावक्र,भगवान गणेश जी, सुकरात जैसे व्यक्ति कभी महान न बन पाते। कई बार हो सकता है कि वर्तमान मे किसी को देखकर लगे कि इसने तो कोई महान कर्म नहीं किये तो अवश्य पूर्व में किये होंगे अंत हमें महानता के कार्य करने चाहिए तथा स्वयं को कभी महान नहीं समझना चाहिए । उन्होंने कहा कि जीवन में विनम्रता, सरलता, सादगी व संयम को अपनाना चाहिए। कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए कि संसार में लोग हमें याद ही नहीं बल्कि अच्छाई से सदैव याद रखें। बहुत से लोग मर कर भी जिंदा रहते हैं तथा बहुत से जीवित भी मृतक तुल्य जीवन जीते है। किसी का तिरस्कार न करें जो भी देखे, सुनें या पढ़े उस पर विचार करें। किसी को भी नुकीले व्यंग्य बाण न चुभाए अर्थात ऐसा कुछ ना बोलें जिससे किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे। किसी का दिल दुखे या प्रेम, एकता, सद्भाव नष्ट हो जाए। अशांति हो जाए कलह-क्लेश या वैमनस्य पैदा हो जाए। हमारे ह्रदय उदार व विशाल होने चाहिए। आज मनुष्य का मस्तिष्क विशाल तथा ह्रदय सिकुड़ता चला जा रहा है। अकड या अभिमान नहीं होना चाहिए। दुश्मन को हराने वाले से भी महान वह है जो उन्हें अपना बना ले। यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु, पदार्थ को पाना चाहता है। उसके लिए प्रयास करता है और यदि थककर बीच में अपना विचार ना बदल दे तो उसे अवश्य प्राप्त भी कर लेता है। जीवन की घटनाओं का यदि मंथन किया जाए तो हमेशा हमें अमृत ही नहीं कभी विष भी मिलता है। संबंधों की मधुरता बनाए रखने के लिए विष को बाहर भी ना उगले हृदय में भी ना ले जाएं, कंठ में ही रख लें। हृदय से प्रभु का सदैव स्मरण करते रहे। अन्दर राम हो व ऊपर से विष भी आ जाये तो मिलकर विश्राम विष +राम बनेगा। विष जीवन लेने वाला नही विश्राम देने वाला बनेगा। समाज में आज बहुत ही जहरीले नागों जैसे लोग भी हो गये हैं जो ऐसा जहर उगलते हैं कि स्वयं तो सुरक्षा के दायरे में चले जाते हैं लेकिन लोग आपस में लड़ते हैं, झगड़ते हैं। आज लोगों में सहनशक्ति का सर्वथा अभाव हो रहा है। किसी को एक दूसरे की बात अच्छी नहीं लगती। उन्होंने कहा कि यदि व्यक्ति पुरुषार्थ करे तो ईश्वर भी उसकी सहायता करता हैं। सबसे महान व्यक्ति वह है जो दृढतम निश्चय के साथ सत्य का अनुसरण करता है। जो व्यक्ति उघोग वीर है वह कारे वाग्वीर व्यक्तियों पर अधिकार जमा लेता है। जिसे हमारा ह्रदय महान समझे वह महान है आत्मा का निर्णय सदा सही होता है। मनुष्य को अपने जीवन को श्रेष्ठ व मर्यादित बनाने के लिए जहां से अच्छाई मिले वहां से ग्रहण करके अपने जीवन को समाज के लिए कल्याणकारी, श्रेष्ठ व मर्यादित बनाना चाहिए।

अपने धारा प्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्र मुग्ध व भाव विभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा व श्री गुरु महाराज कामां के कन्हैया व लाठी वाले भैय्या की जय जयकार से गूँज उठा।

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